कसूर तो बहुत किये हैं ज़िन्दगी में
पर सज़ा वंहा मिली जहाँ बेकसूर थे..
अक्सर, बेवजह - बेकसूर होते हुए भी,
लोग दिल तोड़ जाते हैं हमारा। और
हम बस कोने में बैठे, रोते हैं।
खुद को ही बेवजह कोसते हुए।
हवा भी बेकसूर ,दिया भी बेकसूर ।हवा को चलना जरूरी है और , दिया को जलना जरूरी है।।
हवा को चलना जरूरी है और ,
दिया को जलना जरूरी है।।
हुए घायल, कितने बेकसूर होंगे,
नैनों का वार चला होगा!
वह दिया उसके होठों से बुझ कर,
एक बार फिर जला होगा!!
पास जब हम बहुत थे तो बहुत दूर थे,दूर थे जब हम तो बस मजबूर थे।जाने किसकी वजह से ये रिश्ता था टूटा,तुम भी बेकसूर थे और हम भी बेकसूर थे।।
पास जब हम बहुत थे तो बहुत दूर थे,
दूर थे जब हम तो बस मजबूर थे।
जाने किसकी वजह से ये रिश्ता था टूटा,
तुम भी बेकसूर थे और हम भी बेकसूर थे।।