तेरी बेखुदी में लाखो पैगाम लिखते है,
तेरे गम में जो गुजरी बात तमाम लिखते हैं,
अब तो पागल हो गई वो कलम,
जिस से हम तेरा नाम लिखते है…
हम अपने इख़्तियार की हद से गुजर गए,चाहा तुम्हें तो प्यार की हद से गुजर गए,
जागी है अपने दिल में गुलाबों की आरज़ू,जब मौसम-ए-बहार की हद से गुजर गए।
यहाँ से ढूंढ़ कर ले जाये कोई तो मुझ को। जहाँ मैं ढूंढने निकला था बेख़ुदी में तुझे।
ज़ुबाँ पर बेखुदी में नाम उसका आ ही जाता है, अगर पूछे कोई ये कौन है बतला नहीं सकता।
बेखुदी में बस एक इरादा कर लिया इस दिल की चाहत को हद से ज्यादा कर लिया जानते थे वो इसे निभा न सकेंगे पर उन्होंने मजाक और हमने वादा कर लिया।
तेरी बेखुदी में लाखो पैगाम लिखते है, तेरे गम में जो गुजरी बातें तमाम लिखते है, अब तो पागल हो गई वो कलम, जिस से हम तेरा नाम लिखते है!!