तू किसी और ही दुनिया में मिली थी मुझसे
तू किसी और ही मौसम की महक लाई थी
डर रहा था कि कहीं ज़ख़्म न भर जाएँ मेरे
और तू मुट्ठियाँ भर-भर के नमक लाई थी
कौन तुम्हारे पास से उठ कर घर जाता है
तुम जिसको छू लेती हो वो मर जाता है
जैसे तुमने वक़्त को हाथ में रोका हो
सच तो ये है तुम आँखों का धोख़ा हो
इसीलिए तो सबसे ज़्यादा भाती हो
कितने सच्चे दिल से झूठी क़समें खाती हो
अब ज़रूरी तो नही है कि वो सब कुछ कह दे
दिल मे जो कुछ भी हो आँखों से नज़र आता है
ये दुक्ख अलग है कि उससे मैं दूर हो रहा हूँ
ये ग़म जुदा है वो ख़ुद मुझे दूर कर रहा है