Akele rahne ka bhi, apna hi sukoon h na
kisi ke aane ki khushi na kisi ke jaane ka gum
कबूल हो गई हर दुआ हमारी, मिल जो गई हमें चाहत तुम्हारी, अब नही चाहत है दिल में हमारे कुछ, जब से मिल गई है मोहब्बत तुम्हारी !
बंदगी हम ने छोड़ दी है 'फ़राज़'
क्या करें लोग जब ख़ुदा हो जाएँ
वो न आएगा हमें मालूम था इस शाम भी
इंतिज़ार उस का मगर कुछ सोच कर करते रहे
मेरी तन्हाई का जो क़िस्सा है,
उसमें चाय का एक अहम हिस्सा हैं.
सुना है बहुत बारिश है तुम्हारे शहर में,ज़्यादा भीगना मत
अगर धुल गयी सारी ग़लतफ़हमियाँ,तो बहुत याद आएँगे हम!!