एक अकेले से ये रस्म अदा नहीं होती…शुरुआत ही ‘दो’स्ती की ‘दो’ से होती है!
उन्हें इश्क़ हुआ था
मझे आज भी है....!
वो आज भी मेरे Password में रहती है
जिसे भूलने का दावा मैं रोज करता हूँ
आफत है तेरे खत के फाड़े हुये पुर्जे,रख्खे भी नहीं जाते फेंके भी नहीं जाते..
झज्जे का प्यार,फिर नज़र आने लगा है lशाम ढलते सारा मोह्हला,छत पर नज़र आने लगा है l
दिल के अरमान,दिल तुझसे छुपाना चाहता है lये कब मोह्हबत में,तुझे पाना चाहता है lतुम्हें बना के खुदा,ये दिल मीरा हो जाना चाहता है l