किसी को न पाने से जिंदगी खत्म नहीं होती
लेकिन किसी को पाकर खो देने से कुछ बाकी भी नहीं रहता|
है पेट की आग कुछ ऐसी ,दो रोटी से कहाँ बुझा पाता हूँ lघुमता हूँ दर-दर कुछ इस तरहअपने घर पर मेहमान हो जाता हूँ l
छीन ले मुझसे मेरा सब कुछ,मेरे अंदर का जहां रहने देना,तेरे महलो की ख्वाहिश नहीं,अंधेरा टूटा मकान रहने देना l
बड़ा नेक रिश्ता है फेफड़ों का पेड़ों के साथजो एक का उत्सर्ग है वही दूसरे का आहार
सूरज रज़ाई ओढ़ के सोया तमाम रात
सर्दी से इक परिंदा दरीचे में मर गया
हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते