है पेट की आग कुछ ऐसी ,दो रोटी से कहाँ बुझा पाता हूँ lघुमता हूँ दर-दर कुछ इस तरहअपने घर पर मेहमान हो जाता हूँ l
" दो ही नशा है जो मैं करता नहीं,और बिन किये भी मैं रहता नहीं,एक चाय और एक तुम.. "
कुछ बातें इतनी गंभीर होती है,कि वो केवल मजाक में ही कि जा सकती है
बातों ही बातों में कोई बात बुरी लग जाती है,इस लिए वो महीने में कई बार मुझसे लड़ जाती है lपूछता हूँ कि बात क्या है.. उसे भी याद नहीं,नाराज़ होती है फिर बात उसे कहाँ याद रह जाती है l
"मैंने खुद को,उसमें खो दिया,फिर मैंने उसे खो दिया l"
उसे गजब का शौंक है हरियाली का,
रोज आकर मेरे जख्मों को हरा कर जाता है.