सुबह की चाय,घर की बालकनीतुम्हारे य़ादों का साथ खास है lयही सिलसिला है रोज का ,तुमसे ही चाय की मिठास है l
आज कल वो हमसे डिजिटल नफरत करते हैं,
हमें ऑनलाइन देखते ही ऑफलाइन हो जाते हैं..
किसी को इतना मत चाहो कि भुला न सको,यहाँ मिजाज बदलते हैं मौसम की तरह।
मेरा दिल तो जैसे है बच्चों का गुल्लक ,भरा जिसका जी वही तोड़ता है।
नाराज़ जीने में भी लाख मज़ा है,हर लम्हें में याद और फिर नशा है lरात गुजरती नहीं हम काटते है,हर लम्हें में कई साल छांटते है l
"उम्मीद कम पर सपने बड़े रखना,दूसरों से कम, खुद से रोज कहना,एक गुजारिश तो,सबकी पूरी होगी,नज़र लक्ष्य पे, आँखें खुली रखना l"