आदत बदल सी गई है
वक्त काटने की,
हिम्मत ही नही होती
अपना दर्द बांटने की।
खुशियों से नाराज़ है मेरी जिंदगी,
प्यार की मोहताज है मेरी जिंदगी,
हँस लेता हूं लोगों को दिखाने के लिए
वरना दर्द की किताब है मेरी जिंदगी।
दिल टूटा है मेरा और ख्वाब बिखर गए,
दर्द मिला इतना की जख्मों से हम निखर गए।
मिलता भी नहीं तुम्हारे जैसे इस शहर में,
हमको क्या मालूम था के तुम भी किसी और के हो !
हाल तो पूछती नहीं दुनिया जिंदा लोगों का,
चले आते हैं लोग जनाजे पर बारात की तरह !!
तुझे पाने की तमन्ना दिल से निकाल दी मैंने,
मगर आँखों को तेरे इंतज़ार की आदत सी बन गयी है !