उन्हें खो देने का डर
दिल को बेचैन कर जाता है
वो हैं ही नहीं अपने
नादान दिल क्यूँ भूल जाता है!
"इंसान को जीवन का असली रंग सिर्फ दर्द में ही समझ आता है।"
"जो है ही नहीं मेरा,
उसे खोने से डरता हूँ,
ना जाने कैसा इश्क़ है,
इसमें भी खुश रहता हूँ l"
उलझे हैं खयालों में
डर सा लगने लगा है खुद से..
है नहीं जो आसपास
उसे पैदा कर रहे हैं मन से..
इंसान का दिमाग आसानी से डर जाता,
कोई भी हो Negative Thought
जल्दी से घर कर जाता .
डर का उन पर जोर है,
जिनके Negativity चारो ओर है.
कोई भी डर से पार पा सकता ,
अगर मन में अच्छे ख्याल ला सकता.