Mahakaal ke Nashe mein Chur rahata hun
Jai Mahakaal
अक्सर औकात की बात वही किया करते है,
जो कायर हमेशा झुंड में चला करते हैं
आदमी की दिलेरी खून में होती है,
इसके कैप्सूल नहीं मिलते
आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता है
भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है
तेरी नादानियों पर ख़ामोश था मैं,
और तूने मुझे कमज़ोर समझ लिया..
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ