दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाला
वही अंदाज़ है ज़ालिम का ज़माने वाला
मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगी
वो झूट बोलेगा और ला-जवाब कर देगा
रात की तन्हाई मैं तो हर कोई याद कर लेता है
सुबह उठते ही जो याद आये मोहब्बत उसको कहते है
किसके बारे में सोचती हैं दोस्त तू तो बिल्कुल बदल गई हैं दोस्त
तेरी खातिर तेरी ख़ुशी के लिए, मैंने सिगरेट भी छोड़ दी हैं दोस्त
एक शिकायत मुझे भी हैं तुझसे, तू बहुत झूठ बोलती हैं दोस्त.