कुछ तो था उसके होठो पर ना जाने हम से क्यों शरमाती थी, एक दिन हँसी तो पता चला नालायक तंबाखू खाती थी|
हम तो उसको इम्प्रेस करने के लिए गुन गुना रहे थे,और वो पगली पास आकर बोली:तेरी आवाज़ अच्छी है, कुल्फी बेचा करबेइज्जती हो गई यार
दोस्तीचलो आज फिर उसी बचपन में लौट चलेबैठे फिर से उसी बूढ़े पीपल की छांव तले|