ये सर्द रात ये आवारगी ये नींद का बोझहम अपने शहर में होते तो घर चले जाते
तुम्हारे साथ ही हर ग़म से सुकून पाते है,कभी तुम ही मेरे लिए ग़म बन जाते हो lउम्मीदगी की राहो से ही,रौशन है रिश्ते,जिंदा हूँ तो हँसता-रोता सब नज़र आने दो l
बड़ा नेक रिश्ता है फेफड़ों का पेड़ों के साथजो एक का उत्सर्ग है वही दूसरे का आहार
"तुम्हारे हर झूठ को मैं सच मान बैठा हूँ,पता नहीं, मैं किस कदर प्यार कर बैठा हूँ l"
"ज़िंदगी तेरे किताब को, शायद कभी ना पढ़ पाऊँगा,एक शब्द पे ठहरता हूँ, तो दिन गुजर जाता है l"
"तुम रहो दूर मुझे, ये बर्दास्त मुझे,पर जहाँ रहो बस, सलामत रहो lतुम्हारे आँखों में ना रहूँ, मंजूर मुझे,मेरी मोह्हबत की, अमानत रहो l"