जब भी देखता हूँ किसी गरीब को हँसते हुए,
यकीनन खुशिओं का ताल्लुक दौलत से नहीं होता।
घर में चूल्हा जल सके इसलिए कड़ी धूप में जलते देखा है ,
हाँ मैंने गरीब की सांस को गुब्बारों में बिकते देखा है।
गरीब नहीं जानता क्या है मज़हब उसका ,
जो बुझाए पेट की आग वही है रब उसका।
दिल को बड़ा सुकून आता है,
किसी गरीब की सहायता करने,
पर जब वह मुस्कुराता है !
अमीरी का हिसाब तो दिल देख के किजिए साहब,
वर्ना गरीबी तो कपडों से ही झलक जाती है !
बड़ी बेशरम होती है ये गरीबी,
कमबख्त उमर का भी,
लिहाज नहीं करती !