दर्द जब दिल में हो तो दवा कीजिए।दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए।। 330
कितना ख़ौफ होता है शाम के अंधेरों में।
पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते।।
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक।
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक।।
खैरात में मिली ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती ग़ालिब,मैं अपने दुखों में रहता हु नवावो की तरह...
तुम मुझे कभी दिल, कभी आँखों से पुकारो ग़ालिब,
ये होठो का तकलुफ्फ़ तो ज़माने के लिए है|
हाथो की लकीरों पे मत जा ए ग़ालिब,नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते|