ठहर ज़िन्दगी मेरे कई इंतकाम बाकी हैं,
तू क्यूँ सोचती है कि मैं खत्म हुआ अभी
तो हजारों मुकाम बाकी हैं
मोहब्बत से एक इंतकाम तो हम भी लेंगे,
आग लगायेंगे ज़िंदगी में और ज़ोर से हवा देंगे!
कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आयाबात निकली तो हर इक बात पे रोना आया
Humne to khud se inteqam lia ,
Tumne kya soch kar humse mohabbat ki?
ḳhud apne aap se lenā thā intiqām mujhemaiñ apne haath ke patthar se sañgsār huā