जिया जिंदादिली से जो उसे तू जन्नत अता करना
युगो तक नाम हो जग में तू वो शोहरत अता करना
ग़ज़ल है ग़मज़दा कितनी बता सकता नहीं मौला
हमेशा के लिए राहत को अब राहत अता करना!
किसी की आरज़ू कब तक किसी को बख्श देती है,
कभी तो अश्क आंखों से गिले इजहार करेंगे!
जन्नत की आरजू में सब हज को चले गये,
हमने भी मोहब्बत से अपनी माँ को देख लिया!
जो तू मिले तो जन्नत न गवारा हो मुझे
ना ख्वाहिश गैर की जो तेरा सहारा हो मुझे
तुझे नाम दिया है मैनें “पाख इश्क़” का
फिर कैसे कह दूँ इश्क़ दुबारा हो मुझे
इस लॉकडाउन में जन्नत में जिओगे क्या
चाय बना रहा हूं अदरक वाली पियोगे क्या