जख्म बन गया फिर हरा भरा,
वो याद आये फिर ज़रा ज़रा!
ज़िस्म के ज़ख्म हो तो मरहम भी लगाएं,
रूह के नासुरों का हकीम मिलता नहीं हमें!
है तेरा जिस्म किसी और की बाहों के लिए,
तू तो एक ख़्वाब है बस मेरी निगाहों के लिए!
है तेरा जिस्म किसी और की बाहों के लिए,तू तो एक ख़्वाब है बस मेरी निगाहों के लिए!
जिस्म छू के तो सब गुज़रते हैं,रूह छूता है कोई हजारों में…
जो मेरे जिस्म की चादर बना रहा बरसों…ना जाने क्यों वो मुझे बेलिबास छोड़ गया !!