जख्म बन गया फिर हरा भरा,
वो याद आये फिर ज़रा ज़रा!
ज़िस्म के ज़ख्म हो तो मरहम भी लगाएं,
रूह के नासुरों का हकीम मिलता नहीं हमें!
है तेरा जिस्म किसी और की बाहों के लिए,
तू तो एक ख़्वाब है बस मेरी निगाहों के लिए!
Jo Ladkiya Apne Jism Ko
Hath Nahi Lagane Deti
Aaj Kal Ke Mahan Aashiq
Unhe Bewafa Kehte Hai
रूह ने कई बार मुझ से अकेले में कहाजी लिए हो तो चलो जिस्म बदल कर आयें
रूह मुझे दो, जिस्म भले ही उसे देदो।
जिस्म तो खो दोगे जनाब, फिर भी रूह तो महफ़ूज़ होगी हमारे पास।