जुर्म था तेरे पास आनाअब दूर जाना दूसरा गुनाह होगा
ऐ हवा तू ये जुर्म ना करा कर,
तू उसे यूँ छूआ ना कर….
सुन पगली
अकेले हम ही शामिल नहीं है इश्क की जुर्म में
जब नज़रे मिली थी तो तू भी मुस्कुराई थी
लौटा जब वो बिना जुर्म की सजा काटकर,
सारे परिन्दें रिहा कर दिए उसने घर आकर.