जुर्म था तेरे पास आनाअब दूर जाना दूसरा गुनाह होगा
ऐ हवा तू ये जुर्म ना करा कर,
तू उसे यूँ छूआ ना कर….
सुन पगली
अकेले हम ही शामिल नहीं है इश्क की जुर्म में
जब नज़रे मिली थी तो तू भी मुस्कुराई थी
हमें ख़बर है मोहब्बत के सब ठिकानों की….
शरीक-ए-जुर्म ना होते तो शायद मुखबरी करते!