है एक कर्ज जो हरदम सवार रहता है,
वो माँ का प्यार है जो सब पर उधार रहता है!
अपनों के क़र्ज़
उतारते उतारते याद आया,
एक माँ बाप ही है जो कभी
हिसाब नहीं मांगते !!
कर्ज होता तो उतार भी देते,
कम्बख्त तेरा इश्क था,
चढ़ा ही रहा…
क्या चाहती है हम से, हमारी ये ज़िंदगी....क्या क़र्ज़ है जो हम से, अदा हो नहीं रहा....
क्या चाहती है हम से, हमारी ये ज़िंदगी....
क्या क़र्ज़ है जो हम से, अदा हो नहीं रहा....