कर्ज लेने की
आदत तो न थी हमारी,
पर दिल ज़रूर गिरवी पड़ा है
उनके पास !!
मैं शहर भी आया तो कर्ज लेकर,
अपनी हर जिम्मेदारी का फर्ज लेकर,
किसने सोचा था बिक जाऊँगा
चंद पैसों में हजारों दर्द लेकर।
आज फिर वो मुझ पर एक कर्ज चढ़ा गया,
वो गरीब कुछ न मिलने पर भी दुआ दे गया!
है एक कर्ज जो हर दम सवार रहता है,वो मां का प्यार है, सब पर उधार रहता है।
कर्ज लेने की आदत तो नहीं थी,
लेकिन दिल जरूर गिरवी पड़ा है उनके पास..
तेरे कर्ज में और मेरे फर्ज में…मोहब्बत कुछ धुंधली सी हो गई!