खींचती है मुझे कोई कशिश उसकी तरफवरना मैं बहुत बार मिला हूँ आखरी बार उससे!
आंखें मुंह से ज्यादा बोलती हैं,
इसे पढ़ने की कोशिश करें.
क्या कशिश थी तुम्हारी आँखों मे,
तुझको देखा और तेरा हो गया।
नजाकत तुम में है इबादत तुम में है
सरारत तुम में है कशिश भी तुम में है,
मुझ मे भी मैं कहाँ बचा अब मेरा जो कुछ भी है सब तुम में है।
सामने होकर भी दिल मे कशिश है… अब तो समुन्दर को भी किनारे से रंजिश है!
हार को जीत की इक दुआ मिल गईतप्त मौसम में ठंडी हवा मिल गईआप आये श्रीमान जी यूँ लगाजैसे तकलीफ़ को कुछ दवा मिल गई।
हार को जीत की इक दुआ मिल गई
तप्त मौसम में ठंडी हवा मिल गई
आप आये श्रीमान जी यूँ लगा
जैसे तकलीफ़ को कुछ दवा मिल गई।