यूँ लगे दोस्त तिरा मुझ से ख़फ़ा हो जाना,
जिस तरह फूल से ख़ुशबू का जुदा हो जाना!
ज़िन्दगी तेरी हसरतों से खफा कैसे हो
तुझे भूल जाने की खता कैसे हो,
रूह बनकर समा गए हो हम में
तो रूह फिर जिस्म से जुदा कैसे हो!
ये दिल जिंदगी से खफा हो चला था,
इसे फिर से जीने के बहाने तुम बने!
ये दिल जिंदगी से खफा हो चला था,इसे फिर से जीने के बहाने तुम बने!
जमाना अगर हम से रूठ भी जाये तो,
इस बात का हमें गम कोई न होगा,
मगर आप जो हमसे खफा हो गए तो,
हम पर इस से बड़ा सितम न कोई होगा।