ज़िन्दगी तेरी हसरतों से खफा कैसे हो
तुझे भूल जाने की खता कैसे हो,
रूह बनकर समा गए हो हम में
तो रूह फिर जिस्म से जुदा कैसे हो!
ये दिल जिंदगी से खफा हो चला था,
इसे फिर से जीने के बहाने तुम बने!
ख़फ़ा हो लेते हैं खु़द से ही अक्सर,
हमारा जो़र चलता है हमीं तक!
बराबर ख़फ़ा हों, बराबर मनाएँ,
न तुम बाज़ आओ न हम बाज़ आएँ!