सोचा था हर दर्द बताएंगेतुमसे मिलकरतुमने तो इतना भी नही पूछा कितुम खामोश क्यों हो…
मुझे फुर्सत कहां, कि मैं मौसम सुहाना देखूं…तेरी यादों से निकलूं, तब तो जमाना देखूं..!
होठ तो खामोश रहेंगे वादा है मेरा आपसे।
निगाहें अगर कुछ कह बैठे तो,
खफा मत हो जाना।
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जो सुनता हूँ सुनता हूँ मैं अपनी ख़मोशी सेजो कहती है कहती है मुझ से मेरी ख़ामोशी
जान ले लेगी अब ये ख़ामोशी,क्यूँ ना झगड़ा ही कर लिया जाये..!
लफ्ज़ो को तो दुनिया समझती हैकाश कोई ख़ामोशी भी समझता।