इस तरह हम सुकून को महफूज़ कर लेते हैं,
जब भी तन्हा होते हैं तुम्हें महसूस कर लेते हैं!
महफूज
रखो इश्क अपना,
कहीं दुनिया वाले तुम्हें
जुदा ना कर दे !!
कितना महफूज़ था गुलाब काँटों की गोद में,
लोगों की मोहब्बत में पत्ता-पत्ता बिखर गया!
महफ़ूज़ था बिसात पे तब तक ही बादशाह,
जब तक कि उसके सारे पियादों में जान थी!
महफूज़ रखिये बेदाग़ रखिये मैली न करिये ज़िन्दगी,
मिलती नहीं किरदार की चादर हर रोज़ नई-नई!