अलग ही नशा है तुम्हारी मोहब्बत का
जो वक्त बेवक्त बदलता ही रहता है..!
हमारा और उनका प्यार तो देखो यारो,
कलम से नशा हम करते हैं और मदहोश वो हों जाते हैं.
पलकों पर रुका है समंदर खुमार का,
कितना अजब नशा है तेरे इंतज़ार का.
आज़ाद पंछी बनने का मज़ा ही अलग है..अपनी शर्तों पर जीने का….नशा ही अलग है ..!!
रात का नशा सुबह जब उतरता हैं,
किसी पर प्यार का रंग चढ़ता हैं किसी का उतरता हैं।।
जिसको चढ़ जाय तेरे हसरत-ए-मोहब्बत का नशा, फिर जहाँ में क्या नशा ? कैसा नशा ? किसका नशा ?