बैठे है महफ़िल में … इसी आस में वो,
निगाहें उठाएँ तो ….हम सलाम करें !!
निगाहों से भी चोट लगती हैजनाब जब कोई देख कर अनदेखा कर देता है
बैठे है महफ़िल में इसी आस मेंवो निगाहें उठाएँ तो हम सलाम करें
निगाहों में कोई दूसरा चेहरा नहीं आयाभरोसा ही कुछ ऐसा था तुम्हारे लौट आने का
यूँ निगाहों से न निगाहें मिलाइए…हादसे अक्सर इसी चौराहे पे होते हैं!
दिल मेरे में एक बेचैनी सी छाने लगती है
तू जब किसी और से निगाहें मिलाने लगती है