ये सर्द रात ये आवारगी ये नींद का बोझहम अपने शहर में होते तो घर चले जाते
"कोई गीत ऐसे नहीं रुला जाता है,संग बीते पलो को याद दिला जाता है,नाचने लगती है, दो बोलती आँखें,कभी तेरे नाम से पलक गीला हो जाता है l"
मेरे आंसुओं में तू ही छुपी रहती हैं,
रोज आंखों से तू ही तो बरसती हैं,
किसी गुलाब की बेटी है तू शायद,
इसलिए मुरझाकर भी महकती हैं.
हमारी हर रात तम्हारे साथ हो,
ओर प्यार मोहब्बत की बात हो,
हम लेले तुम को बाँहों में अपनी,
फिर बताये तुम ही ज़िन्दगी तुम ही हमारी कैनाथ हो,
गुड नाईट डिअर…
सूरज रज़ाई ओढ़ के सोया तमाम रात
सर्दी से इक परिंदा दरीचे में मर गया
मैं नहीं तो कोई और तेरी ख़्वाबों में आया करेगा,
रूठेगी तू और तुझे मनाया करेगा,
मगर क्या भरोसा है उसका
क्या वो मेरी तरह ही अपना वादा निभाया करेगा?