ये सर्द रात ये आवारगी ये नींद का बोझहम अपने शहर में होते तो घर चले जाते
"कोई गीत ऐसे नहीं रुला जाता है,संग बीते पलो को याद दिला जाता है,नाचने लगती है, दो बोलती आँखें,कभी तेरे नाम से पलक गीला हो जाता है l"
दिल की बात दिल से कह सको,दिल में इतनी जगह रखना lमुलाक़ात हो जाये किसी मोड़ पे,मुस्कुराने की वज़ह रखना l
मेरे आंसुओं में तू ही छुपी रहती हैं,
रोज आंखों से तू ही तो बरसती हैं,
किसी गुलाब की बेटी है तू शायद,
इसलिए मुरझाकर भी महकती हैं.
सूरज रज़ाई ओढ़ के सोया तमाम रात
सर्दी से इक परिंदा दरीचे में मर गया
मैं नहीं तो कोई और तेरी ख़्वाबों में आया करेगा,
रूठेगी तू और तुझे मनाया करेगा,
मगर क्या भरोसा है उसका
क्या वो मेरी तरह ही अपना वादा निभाया करेगा?