इश्क़ का बीज*********बरसों पहले बोयापर खिला है अभी..फिर इश्क़ भी भलाबुढ़ा हुआ है कभी..
कल जो मिली थी खुशबु-ऐ-इत्र,उसकी बात तो बता रहा हूँ lऔर जो महका गया,वो कोना-कोना रूह तक lवो एहसास जिए जा रहा हूँ l
क्या तुम समझ जाओगी,क्या मैं समझा पाउँगा lइसी द्वन्द में जब रहता हूँ,कहते कहते भी,तभी चुप रहता हूँ l
"तुम्हारे हर झूठ को मैं सच मान बैठा हूँ,पता नहीं, मैं किस कदर प्यार कर बैठा हूँ l"
लफ्जों की तरह तुझे किताबों में मिलेंगे
बन के महक तुझे गुलाबों में मिलेंगे,
खुद को कभी अकेला मत समझना,
हम तुझे तेरे दिल में या तेरे ख्यालों में मिलेंगे.