“बन के इक हादसा बाजार में आ जाएगा, जो नहीं होगा वो अखबार में आ जाएगा
चोर उचक्कों की करो कद्र, की मालूम नहीं, कौन, कब, कौन सी सरकार में आ जाएगा…”
चाँद तारो से रात जगमगाने लगी,
फूलों की खुश्बू से दुनिया महकने लगी,
सो जाइये रात हो गयी है काफ़ी,
निंदिया रानी भी आपको देखने है आने लगी
बन के एक हादसा बाज़ार में आ जायेगा,
जो नहीं होगा वो अख़बार में आ जायेगा
चोर उचक्कों की करो क़द्र के मालुम नहीं,
कौन, कब, कौनसी, सरकार में आ जायेगा
अफवाह थी कि मेरी तबीयत खराब है
लोगो ने पूछ-पूछ कर बीमार कर दिया
शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम
आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे