मेरे पास था भी क्या एक सब्र के सिवा,
वो भी आज लुटा बैठे हैं तेरे इंतजार में।
बुलंदी की उड़ान पर हो तो जरा सब्र रखकर हवाओं में उड़ो,
परिंदे बताते है की आसमान में ठिकाने नहीं होते।
फिर हुआ यूँ की, सब्र की ऊँगली पकड़ के
हम इतना चले के रस्ते हैरान रह गये।
सब्र इतना रखो की इश्क़ बेहूदा ना बनेखुदा मेहबूब बन जाए पर महबूब खुदा ना बने
यही तो फितरत है इंसान की
मोहब्बत ना मिले तो
सब्र नहीं कर पाते
और मिल जाए तो
उसकी कदर नहीं कर पाते
मालूम होता है भूल गए हो शायद
या फिर कमाल का सब्र रखते हो