किसी को मंज़िल की भूख है तो किसी
को पैसों की प्यास है पर सच कहूँ तो
मेरे लिए ये सफर ही ख़ास है।
ज़िंदगी के इस सफर में रिश्तों का बोझ जितना कम हो,
सफर उतना आसान हो जाता है।
"अगर अपने आप से ऊब जाए तो जरूर सफर पर निकल जाय,
हो सकता है की आपकी ज़िंदगी संवर जाए।"
सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो
निदा फ़ाज़ली
ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा
क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा.
हमारी मुहब्बत के सफ़र में एक ऐसा मोड़ भी आया,
ग़ैरों से करते रहें वो गुफ़्तगू,
और हर बार बेवफ़ा हमें बताया।