जाने वो कैसे मुकद्दर की किताब लिख देता है,
सांसें गिनती की और ख्वाहिशें बेहिसाब लिख देता है!
जुदाइयाँ तो मुक़द्दर हैं फिर भी जान-ए-सफ़र,
कुछ और दूर ज़रा साथ चल के देखते हैं!
ज़िन्दगी के सफ़र में मैंने अब तक तो यही जाना है,
ख्वाहिशों का हाथ अक्सर मजबूरियों ने थामा है!
जब भी सफर करो, दिल से करो,
सफर से खूबसूरत यादें नहीं होतीं।
मैं तो यूँ ही सफर पर निकला था,
एक अजनबी मिला और उसने
अपना बना लिया।
आँखों में आंसू और दिल में कुछ अरमान रख लो,
लम्बा सफर है मोहब्बत का जरूरी सामान रख लो!