ग़ुरबत न दे सकी मेरे ज़मीर को शिकस्त,
झुक कर किसी अमीर से मिलते नहीं हैं हम!
पीने वालों को भी नहीं मालूम
मय-कदा कितनी दूर है साक़ी
❤️
उम्र जलवों में हो बसर ये ज़रूरी तो नहीं
हर शबे ग़म की हो सहर ये ज़रूरी तो नहीं,
सब की साकी पे नज़र हो ये ज़रूरी है मगर
सब पे साकी की हो नज़र ये ज़रूरी तो नहीं!
साक़ी नज़र न आये तो गर्दन झुका के देख,शीशे में माहताब है सच बोलता हूँ मैं।
सबकी नज़रों में हो साकी ये ज़रूरी है मगरसबपे साकी की नज़र हो ये ज़रूरी तो नहीं।
तुम आज साकी बने हो तो शहर प्यासा है,
हमारे दौर में खाली कोई गिलास न था।