रहने का मजा तो गाँव में हैं,
शहर कहाँ पेड़ की छाँव में हैं.
यूँ खुद की लाश अपने काँधे पर उठाये हैं
ऐ शहर के वाशिंदों ! हम गाँव से आये हैं
शहर में ज़िन्दगी बदल सी गई हैं,
इक कमरें में सिमट सी गई हैं.
यादों का शहर देखो बिल्कुल वीरान हैं,
दूर-दूर तक न जंगल, न कोई मकान हैं.
गाँव में रहने वाले इतराते नहीं हैं,
शहर में जीने वाले हकीकत बताते नहीं हैं.
शहर की यहीं जिन्दगी हैं,
अब तो हवाओं में भी गंदगी हैं.