रहने का मजा तो गाँव में हैं,
शहर कहाँ पेड़ की छाँव में हैं.
उनके शहर से गुजर रहे हैं…
क्या बताएं क्या गुजर रही है!
ख्वाहिशों के इस शहर में हम बेख्वाहिश से हो चले,
टूटे हम इस कदर इश्क में,
ना फिर दिल जुड़े ना फिर कभी हम मिले!!
गैरों के शहर से गुजरा था
पर कुछ लोग इस तरह मिले कि
लगा ये शहर अपना था
हर किसी के हाथ में बिक जाने को तैयार नहीं,
यह मेरा दिल है आपके शहर का अखबार नहीं.
शहर में ज़िन्दगी बदल सी गई हैं,
इक कमरें में सिमट सी गई हैं.