यूँ खुद की लाश अपने काँधे पर उठाये हैं
ऐ शहर के वाशिंदों ! हम गाँव से आये हैं
शहर में ज़िन्दगी बदल सी गई हैं,
इक कमरें में सिमट सी गई हैं.
ख्वाहिशों के इस शहर में हम बेख्वाहिश से हो चले,
टूटे हम इस कदर इश्क में,
ना फिर दिल जुड़े ना फिर कभी हम मिले!!