सोचा था छुपा लेंगे गम को पर कमबख्त आँखों ने ही बग़ावत कर दी|
कहना बहुत कुछ है अल्फाज़ जरा से कम है खामोश सी तुम हो, गुमसुम से हम है|
कहाँ मिलता है कोई समझने वाला जो भी मिलता है समझा के चला जाता है|
बड़ी अजीब मुलाकाते होती थी हमारी;वो मतलब से मिलते थे. और हमें मिलने से मतलब था!