आसानी से टूट जाऊ, वो इंसान थोड़ी ना हु
सबको पसंद आ जाऊ, चाय थोड़ी ना हु |
जलाकर कलेजा चाय को बाहों में भरता है,
कुल्ल्ड जैसा इश्क भला कौन करता हैं
मैं पीसती रही इलायची, अदरख, दालचीनी,
पर महक चाय से तेरी यादों की आयी
मैंने देखा ही नहीं कोई मौसम,
चाहा है तुझे चाय की तरह।
चाहा है तुझे चाय की तरह
ये चाय की मोहब्बत तुम क्या जानो,
हर एक घूँट में एक अलग ही नशा है।