इश्क का होना भी लाजमी है शायरी के लिये..कलम लिखती तो दफ्तर का बाबू भी ग़ालिब होता।
चुपचाप गुजार देंगे तेरे बिना भी ये जिंदगी,लोगो को सिखा देंगे मोहब्बत ऐसे भी होती है|
मोहब्बत ना सही, मुकदमा ही कर दे मुझ पर, कम से कम तारीख दर तारीख मुलाकात तो होगी...!!
तेरे इश्क का कितना हसीन एहसास है,लगता है जैसे तू हर पल मेरे पास है,मोहब्बत तेरी दीवानगी बन चुकी है मेरी,अब जिंदगी की आरज़ू सिर्फ तुम्हारे साथ है|
बड़े सुकून से रहते है अब वो मेरे बिना... जैसे किसी उलझन से छुटकारा मिल गया हो....
जिंदगी यूं ही बहुत कम है मोहब्बत के लिए;रूठ कर वक़्त गवाने की ज़रुरत क्या है !