देखो, आहिस्ता चलो, और भी आहिस्ता ज़रादेखना, सोच-सँभल कर ज़रा पाँव रखना,ज़ोर से बज न उठे पैरों की आवाज़ कहीं.काँच के ख़्वाब हैं बिखरे हुए तन्हाई में,ख़्वाब टूटे न कोई, जाग न जाये देखो,जाग जायेगा कोई ख़्वाब तो मर जाएगा
टूट कर बिखर जाते है वो लोग मिट्टी की दीवारों की तरह, जो खुद से भी ज्यादा किसी ओर से मोहब्बत किया करते है|
बड़ी हसरत से सर पटक पटक के गुजर गई,
कल शाम मेरे शहर से आंधी !!!!वो पेड़ आज भी मुस्कुरा रहे है, जिनमे हुनर था थोडा झुक जाने का !!!!
वफ़ा ढूढने निकला था ग़ालिब WiFi मिल गया , उधर ही बैठ गया...
दुनिया में जितनी अच्छी बातें हैं…सब कही जा चुकी हैं…बस उन पर अमल करना बाकी रह गया है॥