याद आयेगी हर रोज, मगर तुझे आवाज़ न दूंगा,
लिखूंगा तेरे लिये हर गजल, मगर तेरा नाम न लूंगा।
जब से देखी है हमने दुनिया करीब से;लगने लगे हैं सारे रिश्ते अजीब से !
इन पलकों में क़ैद कुछ सपने है,
बेगाने है कुछ, तो कुछ अपने है,
ना जाने कैसी कशिश सी है इन ख्यालो मेंकुछ लोग दूर हो कर भी कितने अपने है!!!
ठोकर खा कर भी अगर ना संभले तो मुसाफ़िर का नसीब...वरना राहों के पत्थर तो....अपना फ़र्ज़ अदा करते ही हैं.....