सूरज ढला तो कद से ऊँचे हो गए साये,
कभी पैरों से रौंदी थी यहीं परछाइयां हमने!
सूरज सितारे चाँद मेरे साथ में रहे,
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहे!
वो सितारा थी कि शबनम थी कि फूल,
इक सूरत थी अजब बस याद नहीं…!!
कम पड़ गये थे उम्मीद के सितारे आसमान में
इसलिए हमने ज़मी रोशन कर दी अपने जहान में
सितारा शाम आई तेरी यादों के सितारे निकले
रंग ही गम के नही नक्श भी प्यारे निकले