तुम सूरज लेकर इतराते हो दिन के उजाले में,
किसी स्याह रात में आना अपने जुगनू की रोशनी दिखाऊंगी!
सूरज ढला तो कद से ऊँचे हो गए साये,
कभी पैरों से रौंदी थी यहीं परछाइयां हमने!
ये डूबता सूरज भी जाते हुए किसी को खुशी दे जाता है,
खुद तो गुम होता है पर चाँद को रौशनी दे जाता है!
सूरज की फिक्र है कि अंँधेरा कहीं ना हो,
और रात अमावस को लिये घूम रही है!!
चढ़ते सूरज के पुजारी तो लाखों हैं साहब…
डूबते वक़्त हमने सूरज को भी तन्हा देखा है!