क्या चाहती है हम से, हमारी ये ज़िंदगी....क्या क़र्ज़ है जो हम से, अदा हो नहीं रहा....
क्या चाहती है हम से, हमारी ये ज़िंदगी....
क्या क़र्ज़ है जो हम से, अदा हो नहीं रहा....
थोड़ा काजल लगा लिया एक बिंदी लगा लिया…
खुद तो सज गए हुजूर पर हमें तबाह कर दिया..
फरवरी की एक सर्द शाम और साथ तुम्हारा हो....!
काश कुछ पल ही सही, ख़्वाब ये सच हमारा हो....!!
आज की रात भी तन्हा ही कटी
आज के दिन भी अंधेरा होगा
माँ की लोरियाँ अब कहाँ?
चिड़ियों की बोलियाँ अब कहाँ?
ख़ुद से ही जगाना हैं हमें अब तो,
ज़िंदगी आ गई हैं जिस जगह.
गुड मॉर्निंग शायरी.
वो कहता है… कि मजबूरियां हैं बहुत…
साफ लफ़्ज़ों में खुद को बेवफा नहीं कहता।