मेरी पलकों का अब नींद से कोई ताल्लुक नही रहा,
मेरा कौन है ये सोचने में रात गुज़र जाती है…!!!
सोचता रहा ये रातभर करवट बदल बदलकर,
जानें वो क्यों बदल गया, मुझको इतना बदलकर ।
Good Night
मैं तमाम दिन का थका हुआ,
तू तमाम शब का जगा हुआ,
ज़रा ठहर जा इसी मोड़ पर,
तेरे साथ शाम गुज़ार लूँ।
सफर में कही तो दगा खा गए हम..
जहाँ से चले थे,वही आ गए हम...!!
जाने उस शख्स को कैसे ये हुनर आता है,रात होती है तो आंखो में उतर आता है,मैं उस के ख्यालो से बच के कहाँ जाऊ,वो मेरी सोच के हर रास्ते पे नज़र आता है.
मिर्ज़ा ग़ालिब:हमें तो अपनों ने लूटागैरो में कहाँ दम थाअपनी कश्ती वहां डूबीजहां पानी कम थाग़ालिब की पत्नी:तुम तो थे ही गधेतुम्हारे भेजे में कहाँ दम थावहां कश्ती लेकर गए ही क्योंजहाँ पानी कम था!!