चर्चा हो रही थी मोहब्बत लिखने वालो की,
स्याही भटक गई तेरा नाम लिखते लिखते..
मैंने कब कहा तू मुझे गुलाब दे...
या फिर अपनी मोहब्बत से नवाज़ दे...
आज बहुत उदास है मन मेरा.....
गैर बनके ही सही तू बस मुझे आवाज़ दे...!!
मिल सके आसानी से , उसकी ख्वाहिश किसे है? ज़िद तो उसकी है, जो मुकद्दर में लिखा ही नहीं…